Tuesday, April 11, 2023

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-ओशो, तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision)-भाग-पहला (हिन्दी अनुवाद)

(सरहा के पदों पर दिए गए ओशो के अंग्रेजी प्रवचनों Tantra Vision का दिनांक 21 अप्रैल1977 ओशो सभागारपूना में दिये गए बीस अमृत प्रवचनों में से पहले दस प्रवचनों तथा उसके शिष्यों द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों के उत्तरों का हिंदी अनुवाद)

तंत्र कहता है: किसी चीज की निंदा न करोनिंदा करने की वृत्ति ही मूढ़तापूर्ण है। निंदा करने से तुम अपने विकास की पूरी संभावना रोक देते हो। कीचड़ की निंदा न करोक्योंकि उसी में कमल छिपा है। कमल पैदा करने के लिए कीचड़ का उपयोग करो। माना कि कीचड़ अभी तक कीचड़ है कमल नहीं बना हैलेकिन वह बन सकता है। जो भी व्यक्ति सृजनात्मक हैधार्मिक हैवह कमल को जन्म देने में कीचड़ की सहायता करेगाजिससे कि कमल की कीचड़ से मुक्ति हो सके।

सरहा तंत्र-दर्शन के प्रस्थापक हैं। मानव-जाति के इतिहास की इस वर्तमान घड़ी में जब कि एक नया मनुष्य जन्म लेने के लिए तत्पर हैजब कि एक नई चेतना द्वार पर दस्तक दे रही हैसरहा का तंत्र-दर्शन एक विशेष अर्थवत्ता रखता है। और यह निश्चित है कि भविष्य तंत्र का हैक्योंकि द्वंदात्मक वृत्तियां अब और अधिक मनुष्य के मन पर कब्जा नहीं रखा सकतीं। इन्हीं वृत्तियों ने सदियों से मनुष्य को अपंग और अपराध-भाव से पीड़ित बनाए रखा है। इनकी वजह से मनुष्य स्वतंत्र नहींकैदी बना हुआ है। सुख या आनंद तो दूर इन वृत्तियों के कारण मनुष्य सर्वाधिक दुखी है। इनके कारण भोजन से लेकर संभोग तक और आत्मीयता से लेकर मित्रता तक सभी कुछ निंदित हुआ है। प्रेम निंदित हुआशरीर निंदित हुआएक इंच जगह तुम्हारे खड़े रहने के लिए नहीं छोड़ी है। सब-कुछ छीन लिया है और मनुष्य को मात्र त्रिशंकु की तरह लटकता छोड़ दिया है ।

मनुष्य की यह स्थिति अब और नहीं सही जा सकती। तंत्र तुम्हें एक नई दृष्टि दे सकता हैइसीलिए मैंने सरहा को चुना है। मुझे जिससे बहुत प्रेम है सरहा उनमें से एक हैयह मेरा उनके साथ बड़ा पुराना प्रेम-संबंध है। तुमने शायद सरहा का नाम भी न सुना होपरंतु वे उन व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने जगत का बड़ा कल्याण किया हो ऐसे अंगुलियों पर गिने जाने वाले दस व्यक्तियों में मैं सरहा का नाम लूंगायदि पांच भी ऐसे व्यक्ति गिनने हों तो भी मैं सरहा को नहीं छोड़ पाऊंगा।

सरहा के इन पदों में प्रवेश करने से पहले कुछ बातें सरहा के जीवन के विषय में जान लेनी आवश्यक हैं। सरहा का जन्म विदर्भ महाराष्ट्र...का ही अंग हैपूना के बहुत नजदीक। राजा महापाल के शासनकाल में सरहा का जन्म हुआ। उनके पिता बड़े विद्वान ब्राह्मण थे और राजा महापाल के दरबार में थे। पिता के साथ उनका जवान बेटा भी दरबार में था। सरहा के चार और भाई थेवे सबसे छोटे परंतु सबसे अधिक तेजस्वी थे। उनकी ख्याति पूरे देश में फैलने लगी और राजा तो उनकी प्रखर बुद्धिमत्ता पर मोहित सा हो गया था।

चारों भाई भी बड़े पंड़ित थे परंतु सरहा के मुकाबले में कुछ भी नहीं। जब वे पांचों बड़े हुए तो चार भाइयों की तो शादी हो गईसरहा के साथ राजा अपनी बेटी का विवाह रचाना चाहता था। परंतु सरहा सब छोड़-छाड़ कर संन्यास लेना चाहते थे। राजा को बड़ी चोट पहुंचीउसने बड़ी कोशिश की सरहा को समझाने की--वे थे ही इतने प्रतिभाशाली और इतने सुंदर युवक। जैसे-जैसे सरहा की ख्याति फैलने लगी वैसे राजा महापाल के दरबार की भी ख्याति सारे देश में फैलने लगी। राजा को बड़ी चिंता हुईवह इस युवक को संन्यासी बनते नहीं देखना चाहता था। वह सरहा के लिए सब-कुछ करने को तैयार था। परंतु सरहा ने अपनी जिद न छोड़ी और उसे अनुमति देनी पड़ी। वह संन्यासी बन गयाश्री कीर्ति का शिष्य बन गया।.........

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